मदमहेश्वर घाटी के रांसी गांव में एक अनोखी परंपरा,नंगे पांव 14 हजार फीट की ऊंचाई से ब्रह्म कमल लेकर आते है श्रद्धालु

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रूद्रप्रयाग की मदमहेश्वर घाटी के रांसी गांव में विराजमान भगवती राकेश्वरी मंदिर में चले पौराणिक जागरों का समापन पिछले दिनों दुर्योधन वध,युधिष्ठिर के राजतिलक और भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के साथ हुआ। पौराणिक जागरों के समापन अवसर पर मदमहेश्वर घाटी के दर्जनों गांवों के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रतिभाग कर भगवती राकेश्वरी की पूजा अर्चना कर विश्व कल्याण की कामना की।

दशकों से चली आ रही परम्परा के अनुसार भगवती राकेश्वरी मंदिर में सावन मास की संक्रान्ति से लेकर आश्विन की माह की दो गते तक पौराणिक जागरों के माध्यम से 33 कोटि देवी-देवताओं की महिमा का गुणगान किया जाता है। इसी परम्परा के तहत इस वर्ष भी सावन मास की सक्रांति से पौराणिक जागर शुरू किये गये थे। जिसका समापन भगवती राकेश्वरी को बह्मकमल अर्पित करने के साथ हुआ। दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरों में पृथ्वी की उत्पत्ति,कृष्ण जन्म, कृष्ण लीला, कंस वध,शिव पार्वती उत्पत्ति,शिव पार्वती विवाह आदि लीलाओं व महिमा का गुणगान किया जाता है। जागरों के अन्त में कौरव-पाण्डवों की उत्पत्ति,महाभारत युद्ध, दुर्योधन वध, युधिष्ठिर का राज्यभिषेक का गुणगान भी जागरों में किया जाता है। पाण्डवों के स्वर्ग गमन की महिमा के साथ ही पौराणिक जागरों का समापन किया जाता है।

जागरों का समापन भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के साथ होता हैं और इस वर्ष श्रद्धालु तीन दिनों का अनुष्ठान रखकर नंगे पांव लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई से परम्परानुसार ब्रह्म कमल लाए तथा भगवती राकेश्वरी को अर्पित कर पौराणिक जागरों का समापन हुआ।

आपको बता दें कि पौराणिक जागर सावन माह में शुरु होते हैं और आश्विन की दो गते को जागरों का समापन होता है। राकेश्वरी मन्दिर में पौराणिक जागर के समापन का समय बड़ा मार्मिक होता है। पौराणिक जागरों के गायन से क्षेत्र का वातावरण दो माह तक भक्तिमय बना रहा।

ब्रह्म कमल क्यों है खास

ब्रह्म कमल एक ऐसा कमल है, जो हिमालय की चोटी में खिलता है। यह कमल 14 वर्ष में एक बार ही खिलता है, इस कमल को देख पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह आधी रात को कुछ घंटों के लिए ही खिलता है। ब्रह्म कमल को ब्रह्मा जी का ही रूप माना जाता है, इस कमल को देखने से कोई भी मांगी हुई इच्छा पूरी हो जाती है। यह कमल सफेद रंग का होता है, जो दिखने में अत्यंत दुर्लभ और चमत्कारी है। इस ब्रह्म कमल में ब्रह्मा जी का वास होता है और ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी इसी कमल के ऊपर बैठकर सृष्टि की रचना करते हैं।

ब्रह्म कमल

कुछ ऐसी मान्यता भी है कि जब द्रोपदी अपने पतियों के साथ वनवास कर रही थी, उस समय उसे नदी पर एक सफेद कमल दिखाई दिया जो अत्यंत ही आकर्षित था। ऐसे में अपने पति अर्जुन को वह ब्रह्म कमल का फूल को लाने के लिए कहा और द्रोपदी ने जैसे ही वह कमल को पाया उसे अध्यात्मिक शक्ति का एहसास हो गया।

ब्रह्म कमल अत्यंत ही आध्यात्मिक चमत्कारी फूल है। ब्रह्म कमल के बारे में तो पुराणों में सुना ही होगा, लेकिन यह कमल हिमालय के पर्वत में स्थित है, यह बात 100% सत्य है। ब्रह्म कमल को केवल वही व्यक्ति देख सकता है, जिसने अच्छे कर्म किए हैं अन्यथा यह कमल सभी व्यक्तियों को दिखाई नहीं देता है। मदमहेश्वर घाटी के रांसी गांव में अदभुत परम्परा के दौरान श्रद्धालु नंगे पांव 14 हजार फीट की ऊंचाई से बह्मकमल लेकर आए।