जापान से लौटकर पौड़ी ब्लॉक के कवाल्ली गांव के रमेश सुंद्रियाल ने लिखी स्वरोजगार की नई परिभाष,गांव के युवाओं को गांव में रहकर स्वरोजगार के लिए कर रहे है प्रेरित

0
1880
जगमोहन ‘आज़ाद’

उत्तराखंड के गांव निरंतर पलायन की समस्या से जूझ रहे हैं। रोजगार और मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते बेहतर भविष्य की तलाश में पहाड़ से मजबूरी में यह पलायन हो रहा है। लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में पहाड़ निरंतर आबाद भी हो रहे है। कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन होने से देश के विभिन्न हिस्सों से प्रवासियों की वापसी का क्रम शुरू हुआ। गत वर्ष 3.52 लाख प्रवासियों के वापस लौटने से न सिर्फ बंद घरों के ताले खुले, बल्कि गांवों की रंगत भी निखर आई है।

कोरोना संकट के बीच लॉकडाउन जैसी स्थितियों ने प्रवासियों को उनके गृह राज्य लौटने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन इस लॉकडाउन में पहाड़ लौटे कई प्रवासियों ने पहाड़ के कैनवास पर एक नई तस्वीर उकेरी है। जो सच में बहुत खूबसूरत और प्रेरक भी है।
इसी तरह के कैनवास पर खूबसूरत रंग उकेर रहे है,उत्तराखंड के सुदूर पौड़ी ब्लॉक के एक छोटे से गांव कवाल्ली (कालेश्वर) के रमेश सुंद्रियाल। जो जापान में व्यवस्या कर विदेशी धरती पर भी पहाड़ के कई नौजवानों को रोजगार के अवसर तो प्रदान कर ही रहे है। साथ ही कोरोना संक्रमण के इस दौर में अपनी माटी,अपनी थाती से जुड़कर गांव के नौजवानों को शिक्षा के साथ-साथ स्वरोजगार के लिए प्रेरित भी कर रहे है।

रमेश सुंद्रियाल की प्रारंभिक शिक्षा-दिक्षा गांव में हुई। तमाम संघर्षों से गुजरते हुए उन्होंने अपनी गांव की माटी से जापान तक का सफर तय किया। लेकिन जुड़ाव हमेंशा अपनी माटी से रहा है। जब भी मौका मिलता गांव आते। गांव में युवाओं को अपनी भाषा-बोली के साथ-साथ जापानी एवं अंग्रेजी सीखाने में सहयोग करते। इसी के साथ गांव में हर सामाजिक,सांस्कृति और स्वरोजगार के पटल पर हर दिन कुछ न कुछ नया करने की सोच के साथ ग्रामीणों को जोड़कर आगे बढ़ते है। इसी का सफल परिणाम हैं कि आज श्री सुंद्रियाल के सपने उनके अपने गांव के बच्चे साकार करने में उनके साथ खड़े है। तभी तो आज पौड़ी ब्लॉक के कवाल्ली गांव के रमेश सुंद्रियाल के सेब के बागवानों की चर्चा पूरे उत्तराखंड में होने लगी है।

निश्चित तौर पर यह रमेश सुंद्रियाल की कड़ी मेहनत का परिणाम हैं कि आज उन्होंने अपने गांव के युवा हिमांशु के साथ खड़े होकर अपने पूर्वजों की बंजर पड़ी जमीनों पर सेब के पेड़ लगाकर जैविक सेब की अच्छी-खासी पैदावार कर ली है। एक साल के अंदर उनके सेब के बागान खूब फल-फूल रहे है। इसी के साथ सुंदरियाल की प्रेरणा से गांव में तामम युवा जिनमें रोहित,गजेंद्र और कौशल ने रात-दिन कड़ी मेहनत कर सेब,अखरोट और नाशपाती जैसे पौधों की बागवानी लगाकर,बागवानी में अपना करियर बनाने का सपना संजोने लगे है।

रमेश सुंद्रियाल का सपना आज साकार हो रहा है,गांव आबाद हो रहा है,बंजर खेत खलिहान लहलाने लगे, डाली पे फूल मुस्काने लगे, चारों ओर खुशबू बिखरने लगी है। उनके गांव और आस-पास के गांवों के नौजवान ने अपने रोजगार का जरिया इसी खेती से बनाने का मन बना लिया है। तभी तो रमेश सुंद्रियाल भावुक होकर कहते है,मैं अपनी माटी के लिए कुछ कर पा रहा हूं। यह मेरा सौभाग्य है। जिन खेत-खलिहानों में बचपन बिता,खेले-कूदे वह आज बंजर हो रहे है। यह सब देख आंखे नम् हो जाती थी। मैंने विदेशी धरती पर रहते हुए भी अपनी माटी के प्रति अथा प्रेम की अभिलाषा को कभी नहीं छोड़ा,चलता रहा,कोशिश की,मेरे पहाड़ के नौजवानों ने मुझे समझा। मेरी मेहनत को खुद में समाहित किया और आज परिणाम आपके सामने है।

श्री सुंद्रियाल बताते है,कोरोना से जंग में देश के हौसले की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्र दिया था। ‘हमारे अंदर आपदा को अवसर में बदलने की क्षमता है।’ जिसे हमने बदलने की कोशिश की और हम सफल हुए। जापान से जब भी गांव लौटता था। देखता था,हमारे गांव निरंतर बंजर हो रहे हैं,दिल दुःखता था। इस लिए मैंने सबसे पहले अपने गांव का घर बनाया। इसके बाद धीरे-धीरे बंजर पड़े खेतों का फिर से आबाद करने का निर्णय लिया। हमारे गांव में जितने भी युवा है,उन्हें गांव में रहकर ही स्वरोजगार के अवसर खोजने के लिए प्रेरित किया है। जिनमें हिमांशु भी शामिल है। जिसके सर पर पिता का साया नहीं है। जिसके चलते वह जल्द से जल्द नौकरी करने के लिए शहर जाना चाहता है। ताकि अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें,लेकिन मैंने उसे गांव में बागवानी के लिए प्रेरित किया। हिमांशु की कड़ी मेहनत और कुछ करने की सोच का परिणाम हैं कि पिछले एक साल में हिमांशु ने सेब की अच्छा खासा उत्पाद किया है। अब उसकी देखा देखी कई और गांव के युवा भी इस खेती की तरफ आकर्षित हो रहे है।

श्री सुंद्रियाल बताते हैं कि जो सेब का बागवान हमने तैयार किया है। वह इस  पौड़ी की गग्वाड़स्यूँ बेल्ट में एकमात्र पहला प्रेरणा दायक बागवान है। आज जहां बाज़ार सेब की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे में पहाड़ के युवा सेब की बागवानी से अपने खेत-खलिहानों में रहकर अच्छी आमदी कमा सकते है। अब हमारा प्रयास हैं कि हम इन सेबों को विदेशों में सप्लाई  करें,क्योंकि विदेशों में हमारे संपर्क बहुत अच्छे है। हम अपनी माटी पर पैदा हुए इन सेबों को विदेश भेजकर अपनी धरती पर युवाओं के लिए रोजगार के नये अवसर पैदा कर सकते है। जिसके लिए हम प्रयासरत है। हम उत्तराखंड के उत्पादों को विदेशी बाज़ारों में पहचान दिलाने के लिए निरंतर काम कर रहे है। हमें विश्वास है की हमारा यह प्रयास एक क्रांति का रूप लेगा।

जापान से लौटकर अपने गांव कवाल्ली में रमेश सुंद्रियाल निश्चित तौर पर पहाड़ के युवाओं के लिए अपनी माटी में रहकर स्वरोजागर के अवसर उपलब्ध करवाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है। उनके इसी यात्रा में उनके साथ खड़े है उनके मित्र डा.नवीन नैनवाल एवं के.सी.पांडेय जिनके सहयोग से श्री सुंद्रियाल ने पहाड़ के कैनवास पर पहाड़ के युवाओं के लिए स्वरोजगार और पलायन रोकने की दिशा में कई खूबसूरत तस्वीरें उकेर रहे हैं। इन तस्वीरों में पहाड़ हरे-भरे हो रहे,खेत-खलिहान चहक रहे है और गांवों की रंगत भी निखर आई है।