शिवप्रसाद जोशी की नयी पुस्तक,डायरी के रूप में भाषा-विचार और स्टाइल के नए प्रयोग की एक कोशिश

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शिवप्रसाद जोशी की नयी पुस्तक,डायरी के रूप में भाषा और विचार और स्टाइल के नए प्रयोग की एक कोशिश है। विदेश में बिताए दिनों से जुड़ी उलझनों,मुश्किलों,व्यथाओं और संघर्षों और ख़ुशियों और नादानियों का एक बिखरा हुआ सा लेखा-जोखा है,लेकिन ये अपने आंतरिक ताप की रक्षा करते हुए आगे बढ़ती रचना है,अपनी बेकलियों के बारे में बताते हुए लेखक ने किताब पर अपनी कथित बेचारगियों की छाया नहीं पड़ने दी है,बल्कि गहरे पॉलिटिक्ल मायने उसमें उन्होंने जोड़े हैं। फिर वे निजी व्यथाओं का संकलन नहीं बल्कि विश्व नागरिक के हवाले से कहे जाने वाले नोट्स बन पाए हैं।

परिवार और देश समाज से अलग एक नए पर्यावरण में रहना और रहने की तमीज़ सीखना और उस दौरान की तमाम लड़खड़ाहटों को इस किताब में कहीं सीधे तो कहीं संकेतों में दर्ज किया गया है। लेखक की ये एक बड़ी क़ामयाबी कही जा सकती है कि अपने से मुतल्लिक और देश समाज दुनिया पर उसकी टिप्पणियां भावुकता का घेरा तोड़ते हुए अंतःस्थल को संबोधित हैं। इस माने में ये एक सीधा संवाद है। ख़ुद से बातचीत के हवाले से ये एक समस्त वैश्विक बेचैनी से वार्तालाप है।

ये डायरी भी है,प्रवास का वृत्तांत भी,संस्मरण भी या महज़ नोट्स। जैसा कि जानेमाने उपन्यासकार,लेखक और संपादक पंकज बिष्ट ने कहा,इस किताब में विधाओं को ट्रांसेंड करने की ख़ूबी है। इस किताब की सामर्थ्य के हवाले से ये कहा जा सकता है कि हिंदी में अपनी तरह का ये गद्य है और भाषा को एक नया पर्यावरण देने के लिए तत्पर हैं। ये रचना अपनी एक विशिष्टता इस रूप में बना पायी है कि इसमें छानबीन और मरम्मत का काम कुछ ज़्यादा ही आत्मिक मुस्तैदी से हासिल किया गया जान पड़ता है। एक दरिया के किनारे किनारे ये निश्चलता और निश्छलता का पारदर्शी गद्य है।

पुस्तक के बारे प्रतिक्रिया

शिवप्रसाद जोशी विलक्षण गद्यकार हैं

                                   – सुभाष पंत

डायरी में पूरा वृतांत काव्यात्मक अभिव्यक्तियों से भरा पड़ा है। जो इस गद्य रचना को सघनता और लिरिकल गुणवत्ता प्रदान करता है

                                  – पंकज बिष्ट

शिवप्रसाद जोशी का गद्य पद्य की तरह मोहक है,उसमें अनुभव की ऊष्मा है

                         – स्वप्निल श्रीवास्तव

शिवप्रसाद जोशी का गद्य सम्मोहक है, वे उन विरल लेखकों में हैं जिन्हें खोज कर पढ़ा जाना चाहिए

                      – नवीन कुमार नैथानी

इसका एक अंश पढ़ा है,उसने ही जिस तरह से बांधकर रखा है,उसकी उत्कंठा तीव्र हो चली

                          – सुधारानी पाण्डेय

  शिवप्रसाद जोशी जी के ऑब्जर्वेशनस और उनको ज्यों का त्यों व्यक्त कर देने वाली भाषा का मैं हमेशा कायल रहा हूं।

                                 – विजय गौड़

पुस्तकः- किनारे किनारे दरिया,बॉन डायरी

लेखकः- शिवप्रसाद जोशी

प्रकाशनः- काव्यांश प्रकाशन,ऋषिकेश