अंचल व शहर के परिपेक्ष में उत्तराखंड के पत्रकारों के सरोकार

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सी.एम पपनैं

पत्रकारिता के क्षेत्र मे उत्तराखंड की पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े पत्रकारों का गौरवपूर्ण अतीत रहा है। उत्तराखंड के पत्रकारों ने सत्तासीन रहे महा दमनकारी गोरखों व उसके बाद अंग्रेजो के खिलाफ निर्भीक कलम चला पत्रकारिता का धर्म निभाना आरंभ कर दिया था। कुली बेगार,जंगल बंदोबस्त,बाल शिक्षा,मद्यनिषेध, स्त्री अधिकार प्राकृतिक विपदाओं इत्यादि से जुडी अनेको समस्याओ पर उत्तराखंड के पत्रकारों द्वारा स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं मे की गई प्रखर पत्रकारिता के परिणाम स्वरूप, उक्त क्षेत्रीय खबरों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया मे भी स्थान मिला।

क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम पत्रकारिता के उच्च आदर्शो का पालन कर,पत्रकारों द्वारा सत्तासीनों के भ्रष्टाचारो व दमनकारी नातियों की बखिया उखेड़ व्यवहारिक पत्रकारिता का जनमानस को मतलब समझाया गया। निर्भीक पत्रकारिता करने वाले अनेकों पत्रकारों को सत्ताधारियों का कोप-भाजक बन जेल की हवा भी खानी पड़ी। शराब माफियाओ के इरादों की खिलाफत करने पर,जान से हाथ धोना पड़ा। अनेकों निर्भीक पत्र-पत्रिकाऐ भ्रष्ट राजनीति की तिरछी नजरों का शिकार बन बंद भी हुई। परन्तु उत्तराखंड के पत्रकार डिगे नहीं।

पत्रकारिता के बढ़ते महत्व व बदलती तकनीक से उत्तराखंड मे नई पत्र-पत्रिकाओं का उदय होता चला गया। पत्रकारिता को नए आयाम,पत्रकारों को बल मिलता चला गया। इसी बल स्वरूप पत्रकार निर्भीक होकर पत्रकारिता का धर्म निभाते रहे। उद्देश्यपूर्ण पत्रकारिता की नींव की ईट को मजबूत करते चले गए। राजनैतिक,सामाजिक.आर्थिक,पर्यावरण,साहित्यिक और सांस्कृतिक इत्यादि विषयों पर प्रखरता के साथ अपनी कलम को धार दे बचन बद्ध होकर चेतना जगाते रहे।

चेतना जगाने व स्थानीय समस्याओं व जनजीवन के अभावो को उजागर कर राष्ट्रीय पटल पर रखने में उत्तराखण्ड के कुछ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं मे समय विनोद,पुरुषार्थ,गढ़वाली, शक्ति, स्वाधीन प्रजा,जागृति जनता, विशाल कीर्ति, कुर्मांचल समाचार,कुमाऊँ कुमुद,दून दर्पण,डांडी-कांठी,गढ़वाल समाचार,कुंजराशन,नैनीताल समाचार,युगवाणी,पिंडारी मेल,गढ़वाली धै,अल्मोड़ा समाचार,जंगल के दावेदार,प्यारा उत्तराखंड,जागरण उत्तराखंड,मध्य हिमालय,उत्तरांचल पत्रिका, गढ़वाल पोस्ट,हिमालय के स्वर,उत्तराखंड खबर सार,पर्वत जन,उत्तराखंड प्रभात,अलकनंदा, प्रकृतलोक,कुमाँऊ केसरी,अमर संदेश इत्यादि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। पर्वतीय अंचल के दूरदराज क्षेत्रो से, लोगों के बीच से छन कर आती,जनसरोकारों से जुड़ी तथ्यपरक सूचनाओ व घटनाओं को स्थानीय पत्रकारों द्वारा प्राथमिकता के आधार पर पत्र-पत्रिकाओं मे सारगर्भित प्रकाशित कर,पत्रकारिता का महत्व उजागर किया गया। उत्तराखंड के जनजीवन,संस्कृति,प्रकृति व पर्यावरण से जुडी घटनाओ पर स्थानीय पत्रकारों द्वारा की गई गहरी छानबीन व उनके ज्ञान ने अंचल की पत्रकारिता को ऊंचा मुकाम हासिल करवाया। घटित घटनाओं को बिना किसी लाग लपेट के,बिना किसी शाब्दिक जाल के,स्थानीय पत्रकारों ने बड़ी निर्भीकता से प्रकाश मे लाने की पहल की।

अवलोकन कर ज्ञात होता है,छोटे कस्बों,नगरों व दिल्ली महानगर से प्रकाशित होने वाली उत्तराखंड की पत्र-पत्रिकाओं के पत्रकारो के सम्मुख चुनोतिया छोटी नही रही, न ही संकट और खतरे छोटे रहे। समाज के प्रति जवाब देही की प्राथमिकता इनमे सदैव रही। लोकतंत्र के चौथे पाए पर खड़े होने का दंभ भी उन मे कभी नही रहा। जो मर्जी,कभी किसी के भी पक्ष-विपक्ष, दबाव मे नही लिखा। उक्त विधान को, पत्रकारों ने भली-भांति समझ,जनसरोकारों के हित मे सदैव खड़ा रहना,पत्रकारिता का धर्म समझा।

समय के बदलते चक्र के साथ,वर्तमान मे मीडिया के स्वरूप मे बदलाव आने से,पत्रकारिता के मूल्यों मे भी बदलाव आ गया है। पत्र-पत्रिकाए हो,टीवी हो या आज का डिजीटल मीडिया लोगों के जीवन में पहले से कही ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। सूचना क्रांति की प्रगति के साथ-साथ इसका महत्व निरंतर बढ़ने से,मीडिया व्यवसायिक धंधे मे तब्दील हो गया है। डिजीटल मीडिया मे टीवी से भी पहले खबर चल जाती है। यह सब एंड्राइड मोबाइल और डाटा के सुलभ होने से और बढ़ गया है। हाल-फिलहाल,लगभग मीडिया हाउस,डिजीटल मे भी, खुद का विस्तार करता दिखलाई दे रहा है।

देखा-देखी,वर्तमान में देश के अधिकतर पूंजीपतियों ने,जिनका मीडिया से कभी भी दूर का रिश्ता तक नही रहा,प्राथमिकता के साथ अपने मीडिया हाउस खोल लिए हैं। उभरते पूंजीपतियों के लिए मीडिया हाउस नाम,शोहरत,रौब जमाने,सत्ता के करीब रह लाभ कमाने का उद्योग बन गया है। जिससे मीडिया का महत्व कम हुआ है। पत्रकारिता के मूल्यों का हास हुआ है।

मीडिया लाभ के उद्योग मे तब्दील हो जाने से,पत्रकारिता मे जनसरोकारों से जुड़ा धर्म भी,परिवर्तित हो गया है। मीडिया घरानों मे काम कर रहा,आज का युवा पत्रकार,कॉरपोरेट की कठपुतली बन,इशारे पर नाच,पत्रकारिता का असली धर्म ही भूल गया है। खबरों का महत्व कम,विज्ञापनों का महत्व ज्यादा हो गया है। लाभ के गुणा-भाग मे बड़े मीडिया घरानो ने छोटे अखबारों,पत्र-पत्रिकाओं को सत्ता व विज्ञापन दाताओं के साथ गठबंधन कर,निगलना शुरू कर दिया है। वैकल्पिक मीडिया विकसित न होने के परिणाम स्वरूप, जनसरोकारों से जुडी व्यवहारिक पत्रकारिता का लोप हो गया है।

ऐसे में,निर्भीकता से पत्रकारिता का धर्म निभाने वाले,छोटे पत्र-पत्रिकाओं व डिजीटल मीडिया से जुड़े पत्रकारों की भूमिका अहम बन गई है। उक्त विविध विधाओं से जुड़े पत्रकार ईमानदारी व निर्भीकता से अपना धर्म जनसरोकारों के हित मे निभा,तथ्यपरक होने के साथ-साथ निष्पक्ष पत्रकारिता करते रहे तो,भ्रष्टाचारी व दमनकारियों की कारगुजारियों का भंडाफोड़ कर,जनता को जागरूक करने का काम आसानी से किया जा सकता हैं। तमाम दबाओ व धमकियों के बावजूद,व्याप्त भ्रष्टाचार व दमन की खिलाफत में,निष्पक्ष कलम चला,उसे उजागर करना ही,सच्ची पत्रकारिता है,पत्रकारों को इस बात को गांठ बाढ़ कर रखना होगा।

मीडिया की जो भूमिका होनी चाहिए। वैकल्पिक मीडिया जिस तरह से हमारे यहा प्रस्तुत होना चाहिए। जिसके अभाव मे उत्तराखंड के छोटे कस्बो व नगरों मे पत्रकारिता का पाठ पढ़े पत्रकारों द्वारा,देश की पत्रकारिता का हब माने जाने वाले,दिल्ली के बड़े मीडिया हाउसों से जुड़ कर,पत्रकारिता करने या वर्तमान संदर्भ में,रोजगार प्राप्त करने की जो भी मजबूरी रही हो,पत्रकारिता के संदर्भ में,कितनी सार्थक है,यह पुरानी पीढ़ी के वे पत्रकार भली भांति जानते हैं,जो पत्रकारिता के स्वर्णिम दौर से गुजरे हैं। जिस दौर मे संपादक की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी।

वर्तमान मे मीडिया घरानों से जुड़ी पत्रकारिता उस दौर से गुजर रही है,जहां संपादक की जगह,सीईओ पत्रकारो को दिशानिर्देश जारी करता है। जिस निर्देशकर्ता को पत्रकारिता का एबीसी भी पता नहीं है। पत्रकार का जॉब अस्थाई हो गया है। जॉब तभी तक सुरक्षित है,जब तक वह कॉरपोरेट के इशारे पर नाचता रहे। बावजूद इसके, उत्तराखंड के युवा पत्रकारो द्वारा बड़े मीडिया घरानो के प्रकाशनों व इलेक्ट्रोनिक मीडिया में दमदार रिपोर्टिंग कर,राष्ट्रीय फलक पर जो अद्वितीय नाम कमाया,किसी से छिपा नहीं है।

वर्तमान दौर मे जब बड़े मीडिया ग्रुपो मे जनसरोकारों से जुडी खबरो का कोई महत्व नही रह गया है। स्थानीय मुद्दे गौण हो गए हैं। ऐसे मे अवलोकन कर ज्ञात होता है,राष्ट्रीय फलक पर मीडिया हाउसों से जुड़ा पत्रकार,स्थानीयता का ख्याल रख ही नही सकता,आंचलिक खबर चाहे कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हो। ऐसे में,यह नही सोचा जाना चाहिए,कि पूरी की पूरी पत्रकारिता तिरोहित हो गई है। उक्त कार्य क्षेत्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े पत्रकार,निष्ठापूर्वक अपना धर्म समझ,निभा रहे हैं। उनका सम्पर्क गांव-गांव तक,समाज के हर वर्ग तक,आज भी बना हुआ है। घटित घटनाओं की खबर मौके पर प्रत्यक्ष पहुच,स्थानीय पत्रकारो द्वारा ही देश-प्रदेश के फलक पर पहुचाई जाती है। पत्रकारों के लिखे शब्द आज भी ब्रह्म वाक्य माने जाते हैं,जिनका महत्व भी है। दरअसल,पत्रकारिता जनता के जितने करीब होगी,उतनी ही ज्यादा सफलता इसके उद्देश्य मे होगी। यह सब,आंचलिक पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े पत्रकारों द्वारा की जा रही पत्रकारिता में,स्पष्ट दृष्टिगत है।

वर्तमान मे उत्तराखंड के साथ-साथ दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पत्र-पत्रिकाऐं,जिनसे सैंकड़ो पत्रकार जुड़े हुए हैं,स्थापित सरकारों की स्वार्थपरक नीतियों के कारणवश,स्वयं अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई में मशगूल हैं। वास्तविक लड़ाई के पचड़े मे पड़ने से भी वे, बचते हुए दिखाई देते हैं। परन्तु, अंदर खाते,सरकारों की स्वार्थपरक नीतियों को लम्बे अरसे से भुगतने व अभावो को झेलने के बावजूद,इन पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े पत्रकार,निष्पक्ष तौर पर संवेदनशील होकर अपने निजी बल,पत्रकारिता का धर्म निभा रहे हैं,जो जनमानस को सुकून प्रदान करने के साथ-साथ,प्रेरणा भी प्रदान करता नजर आता है।

मीडिया के बढ़ते महत्व को देख,राष्ट्रीय फलक पर आज जरुरत है,वैकल्पिक मीडिया की। जो स्वायत्त हो,स्वतंत्र हो,किसी की भी गड़बड़ी इंगित कर सकता हो। अपने आप की आलोचना करता हो। ऐसे वैकल्पिक मीडिया से जुड़ कर,आज का युवा पत्रकार भय मुक्त हो,क्रांतिकारी बन,अंचल के जल,जंगल,जमीन और शराब माफियाओ तथा भ्रष्ट नोकरशाहो व राजनेताओ से टक्कर ले,उनके भ्रष्टाचारों की निडरता पूर्वक कलई खोलने का साहस कर सकता है।

असंभव को संभव,दमदार व निष्पक्ष पत्रकारिता के माध्यम से ही किया जा सकता है। वह भी तब,जब पत्रकारों की सुरक्षा व्यवस्था हो। संस्थागत इनश्योरेंश व्यवस्था हो। क्यों कि,पत्रकारों की भी अपनी सीमाऐं हैं। उनका भी परिवार है। उनके साथ भी हादसा हो सकता है। पत्रकारों के संगठन चाहे वे उत्तराखंड में हो या दिल्ली प्रवास में सब मे एका होना,बुरे वक्त के लिए कोष का होना,नितांत आवश्यक व समय की मांग भी है। जब तक उत्तराखंड के समस्त पत्रकार बन्धु एक दूसरे के संकट में खड़ा होना नही सीखेंगे,तब तक अंचल व जनसरोकारों के हित मे निर्भीक पत्रकारिता की कल्पना की ही नही जा सकती।