प्राचीन और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों पर बेवजह का विवाद

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कमल किशोर डुकलान

भारत में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का प्राचीन काल से ही बहुत सम्मान रहा है जिस कारण प्राचीन चिकित्सा पद्धति योग, आयुर्वेद के प्रति समाज में काफी गहरा विश्वास है। कोविड संक्रमण उपचार में दोनों ही पद्धतियों की सीमाओं को समझना देश और समाज सबके हित में है।

कोविड महामारी से जूझते हुए समाज में अगर चिकित्सकों को एक बेवजह के विवाद में उलझ जाना पडे़,तो इससे अच्छा लक्षण कोई और नहीं हो सकता। योगगुरु रामदेव ने आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर बाबा रामदेव ने हाल में जो बयान दिए और उनसे जो देश और समाज में विवाद खड़ा हुआ वह ऐसा ही विवाद है। जो आधुनिक चिकित्सा और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर नया टकराव पैदा करता है। आधुनिक चिकित्सक भी स्वास्थ्य उपचार में अधिकांश खान-पान में आयुर्वेद के ही नुस्खों को सुझाते हैं। यद्यपि योगगुरु रामदेव ने विवाद को बढ़ता देख अपने बयान पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ.हर्षवर्धन के हस्तक्षेप के बाद खेद भी व्यक्त करते हुए अपने बयान को वापस ले लिया,लेकिन यह विवाद अभी थमा नहीं है।यह सच है कि कोविड संक्रमण बचाव में अगर किसी पेशे के लोग सबसे ज्यादा खतरा उठा रहे हैं,तो वह हमारे आधुनिक चिकित्सा पद्धति के डॉक्टर ही हैं,जो दिन-रात कई-कई घंटे कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे हैं साथ ही देश भर में असंख्य कोरोना पीड़ितों की जाने बचाने में हमारे हजारों डॉक्टरों की जान जाने की खबरें आ रही हैं,ऐसी स्थिति में उनके आधुनिक चिकित्सा पद्धति अथवा आधुनिक चिकित्सकों के मनोबल को बढ़ाने की जरूरत है।

भारत में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति योग और आयुर्वेद का प्राचीन समय से ही बहुत सम्मान रहा है हमारे गुरुकुल शिक्षा के केन्द्र इसके उदाहरण हैं। महर्षि पतंजलि, धनवंतरी,सुश्रुत पारम्परिक चिकित्सा विज्ञान के जनक रहें हैं। इसलिए प्राचीन चिकित्सा पद्धति के प्रति समाज में काफी गहरा विश्वास है। स्वास्थ्य उपचार में आधुनिक चिकित्सा उपचार के साथ हमारे वृद्ध जन दादी जी के नुस्खों पर आज भी विश्वास करते हैं। भारत उन कुछ देशों में से एक है,जहां पारम्परिक चिकित्सा के साथ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को भी मान्यता मिली हुई है। मगर यह भी सच है कि परंपरागत ज्ञान या अनुभव पर आधारित चिकित्सा पद्धतियों में बहुत कुछ मूल्यवान है,तो उनकी सीमाएं भी बहुत हैं, क्योंकि वे तब विकसित हुईं, जब सूक्ष्म जांच-परख के तरीके और उपकरण नहीं थे। आम तौर पर भारतीय जन इस बात को सहज रूप से जानता है,और यह समझता है कि कब उसे डॉक्टर या अस्पताल की शरण में जाने की जरूरत है।

दूसरी तरफ अगर देखा जाए तो बाबा रामदेव जैसे योग व आयुर्वेद के प्रचारकों का प्रभाव भी समाज में कम नहीं है, इसलिए जब वह सनसनीखेज दावे करते हैं या कोई आरोप लगाते हैं, तब उसका गलत असर हो सकता है। यह सही है कि कोरोना का अक्सीर इलाज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में नहीं है,मगर चिकित्सा वैज्ञानिकों को यह भी मालूम है कि उनके ज्ञान की सीमा कहां है और वे उसके आगे बढ़ने का प्रयास कहां तक कर सकते हैं। कोरोना के मरीजों के इलाज में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में पिछले एक साल में बहुत कुछ तरक्की हुई है। पिछले एक वर्ष में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के शोधों द्वारा कोरोना के गंभीर मरीजों को बचाने का सामर्थ्य आधुनिक चिकित्सकों ने ही किया है। नियमित ऑक्सीजन स्तर बढ़ाने में आयुर्वेद के काढ़े एवं योग के प्राणायाम से सामान्य रह सकता है किन्तु आज जिस प्रकार से आपा-धापी भरें जीवन में मनुष्य ने प्राचीन आयुर्वेदिक नुस्खे एवं योग की क्रियाओं को छोड़ा है उससे कोरोना संक्रमण से देखने में आया है कि सबसे ज्यादा ऑक्सीजन का स्तर नीचे जा रहा है,ऐसी स्थिति में कोरोना संक्रमित को काढे़ या प्राणायाम की अपेक्षा कृतिम प्राणवायु ऑक्सीजन ही देना पड़ रहा है।

कोरोना संक्रमण में नब्बे प्रतिशत से ज्यादा संक्रमित आयुर्वेदिक नुस्खे और योग की क्रियाओं द्वारा अपने आप ही ठीक हो  रहें हैं,चाहे वे कोई भी इलाज करें या न करें। इसलिए इसके बारे में अवैज्ञानिक दावे करना आसान है। लेकिन इस समय हमें यह समझना जरूरी है कि सवाल किसी पद्धति या व्यक्ति-संस्था की प्रतिष्ठा का नहीं है,लोगों की सेहत का है, इसलिए थोड़ा संयम बरतना ठीक होगा। फिर अतिरंजित दावों से आयुर्वेद या परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों की विश्वसनीयता भी बनाए रखनी होगी और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के द्वारा आधुनिक चिकित्सा पद्धति में कोरोना का जो इलाज चल रहा है दोनों ही पद्धतियों की सीमाओं को समझना सबके हित में है।