![](https://samvadjanhvi.com/wp-content/uploads/2021/05/WhatsApp-Image-2021-04-21-at-7.00.19-PM-2-1.jpeg)
उत्तराखंड के इतिहास और भूगोल की समझ के साथ जो चेतना विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा जी ने बर्खूबी से निभाई। वे आध्यात्मिक सात्विक शक्ति से वृक्षों के प्रति लोगों में मोह जागृत करने से पहले एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी विद्यमान थे।
![](https://samvadjanhvi.com/wp-content/uploads/2021/05/183890905_3014711438753611_3423002112172656050_n-1-1024x768.jpg)
पद्मभूषण से सम्मानित महान पर्यावरणविद और अपने आध्यात्मिक सात्विक शक्ति से वृक्षों के प्रति लोगों में मोह जागृत करने वाले, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चिपको आंदोलन के प्रणेता श्री सुंदरलाल बहुगुणा का निधन विश्व के पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक बड़ा झटका है। इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि जिस व्यक्ति ने अपना संपूर्ण जीवन प्रकृति के लिए लगाया और उनके जीवन को प्रकृति के प्रति छेड़छाड़ से उपजे कोरोना वायरस ने लील लिया। वे वृक्षों के प्रति लोगों में मोह जागरण में अक्सर कहां करते थे की प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार के दुष्परिणाम एक न एक दिन हमें भोगने ही पड़ेंगे। मेरा लम्बे समय तक उत्तरकाशी में कर्म-क्षेत्र होने के कारण अनेकों बार प्रत्यक्ष दर्शन एवं उनके विचारों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने उनके जैसा सादगी पसंद और प्रकृति-पर्यावरण के लिए इतना चिंतित व्यक्ति किसी और को नहीं देखा। उनके द्वारा पर्यावरण संरक्षण का जो संकेत देश और दुनिया भर में पहुंचा वह उस समय का वैश्विक पर्यावरण संरक्षण का मूल आधार बना।
![](https://samvadjanhvi.com/wp-content/uploads/2021/05/navbharat-times-3-1.jpg)
सुंदरलाल बहुगुणा हमेशा ही पारिस्थितिकी और आर्थिकी को जोड़ने की बात करते थे। वे कहते थे स्थिर अर्थव्यवस्था स्थिर पारिस्थितिकी पर ही निर्भर करती है। आज अगर हमें लगता है कि प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करके हम अपनी अर्थव्यवस्था को किसी भी ऊंचाई पर पहुंचा सकते हैं, तो हम नीचे से अपनी जमीन को खिसका रहे हैं। और आज वही सामने आ रहा है। बढ़ते वैश्विक तापमान को लेकर आज दुनिया भर में जो चर्चाएं हो रही हैं,और जिस तरह से जलवायु परिवर्तन का खतरा हमारे ऊपर मंडराने लगा है,श्री सुंदर लाल बहुगुणा ने संकेत किया था।
सुंदर लाल बहुगुणा के भीतर इतनी सरलता थी,चाहे भोजन को लेकर हो या पहनावे को लेकर हो,वह कभी भी किसी आडंबर का हिस्सा नहीं बने। सादा जीवन-उच्च विचार उनके व्यक्तित्व पर पूरी तरह चरितार्थ होता है। उनकी सोच बहुत ही स्पष्ट और पैनी थी। वह इसी बात पर केंद्रित थे कि मनुष्य को अपने चारों तरफ के पर्यावरण को हमेशा बेहतर बनाने की निरंतर कोशिश करनी चाहिए,क्योंकि यह जीवन के सवालों का सबसे बड़ा उत्तर है और दुर्भाग्य से जिसकी मानव ने हमेशा उपेक्षा की है।
![](https://samvadjanhvi.com/wp-content/uploads/2021/05/186474403_2937482146524270_6891305709243309134_n.jpg)
1927 में जन्मे श्री सुंदरलाल बहुगुणा 13 साल की उम्र में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन की दिशा बदल गई। सुमन से प्रेरित होकर वह बाल्यावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। वह अपने जीवन में हमेशा संघर्ष करते रहे और जूझते रहे। चाहे पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदलन हो,चाहे टिहरी बांध का आंदोलन हो,चाहे शराबबंदी का आंदोलन हो,उन्होंने हमेशा अपने को आगे रखा। नदियों,वनों व प्रकृति से प्रेम करने वाले बहुगुणा उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। जब भी उनसे बातें होती थीं, तो विषय कोई भी हो,अंततः बात हमेशा प्रकृति और पर्यावरण की तरफ मुड़ जाती थी। उनके दिलोदिमाग और रोम-रोम में प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना थी। उन्होंने अपने कार्यों से अनगिनत लोगों को प्रेरित किया।
![](https://samvadjanhvi.com/wp-content/uploads/2021/05/Big_chipko_movement_1522047126-1024x684.jpg)
चिपको आंदोलन को लेकर जब सुंदरलाल बहुगुणा से पत्रकारों ने एक साक्षात्कार में पूछा गया था कि पेड़ों को बचाने के लिए आपके मन में यह नवोन्मेषी विचार कैसे आया,तो उन्होंने जो कुछ कहा उसमें उनके जीवन का सार नजर आता है। उन्होंने काव्यात्मक जवाब देते हुए कहा,क्या है जंगल का उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी,पानी और बयार हैं जीने के आधार। इसका अर्थ है कि वनों ने हमें शुद्ध मिट्टी, पानी और हवा दी है, जो कि जीवन के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने बताया था कि चिपको आंदोलन मूलतः पहाड़ की महिलाओं का शुरू किया आंदोलन था। ये महिलाएं नारा लगाती थीं,लाठी गोली खाएंगे,अपने पेड़ बचाएंगे।
![](https://samvadjanhvi.com/wp-content/uploads/2021/05/sudarlal-bahuguna_1621583271.jpeg)
आज भले ही सुन्दर लाल बहुगुणा पार्थिव रूप से हमारे बीच नहीं हैं,लेकिन उनके विचार,उनके काम हमेशा हमारे बीच रहेंगे। उनके कार्यों का संकलन,उनके सुझाए मार्गों पर चलकर और प्रकृति व पर्यावरण के प्रति जागरूक भाव रखकर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।