स्कूलों के बंद होने पर फूट-फूट कर रोया जाना चाहिए

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महेशा नन्द

दिनांक 3 जुलाई 2021 को मैं राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय बाड़ा के समस्त कार्यभार से मुक्त हो गया हूँ। विगत साल से मैं मानसिक रूप से बहुत पीड़ा से गुजर रहा था. इस विद्यालय में मैं बतौर सहायक अध्यापक 12 दिसम्बर 2001 को आया था। पूरे बीस साल की सेवा इस विद्यालय को दी। इस विद्यालय में मैंने तन-मन-धन से अपने आप को न्यौच्छावर किया था। अपना शरीर तोड़ा, खुद को शारीरिक रूप से कमजोर किया। इतना हार्ड वर्क किया जिसके कारण मुझे अनेक शारीरिक तकलीफों और आर्थिक नुकसानों का सामना करना पड़ा। तथापि मैं बहुत खुश था। संघर्ष करना मेरे पारिवारिक लक्षण हैं। मैंने शिक्षक के रुप में प्रशिक्षण लेने के तौर पर पहली सेवा राजकीय प्राथमिक विद्यालय सौंडल गाँव, विकास क्षेत्र कल्जीखाल में दी।

मेरी पहली पोस्टिंग प्राथमिक विद्यालय कनोठा खाल में हुई। यहाँ मैंने डेड साल तक काम किया। इन्हीं डेड साल के अन्तराल में मैं तल्ली बांसई में अटैच हुआ। स्कूलों के प्रति वहाँ के अभिभावकों का नजरिया अद्भुत है। बच्चों को खेलने के लिए मैदान नहीं था। स्कूल खड़ी ढाल पर बनी थी। तल्ली बांसई के अभिभावकों ने खुद अपनी मेहनत से बच्चों के लिए फील्ड बनाया। खुदाई करने पर भारी-भरकम पत्थर आड़े आ गए। जिनको कारतूस से ही तोड़ा जा सकता था किन्तु घरेलु उपचार हुआ। अभिभावकों व गाँव के जागरुक लोगों ने पत्थरों के नीचे लकड़ी के गेले डाल दिए और उन पर आग लगा दी। कई दिनों तक पत्थरों के नीचे आग लगी होने के कारण पत्थर चटक गए। लोगों ने आसानी से मैदान बना दिया। जब मैंने उनके इस अनुकरणीय कार्य के बारे में सुना तब मैं बहुत प्रेरित हुआ। उसके बाद मुझे बांसई मल्ली में संबद्ध किया गया जहाँ मैं मात्र छः माह रहा। बांसई मल्ली गाँव के लोगों ने मुझे बहुत सम्मान के साथ विदा किया। मैं बांसई गाँव विकास क्षेत्र पोखड़ा का हार्दिक आभारी हूँ।

बांसई गाँव से पदोन्नति पाकर मैं पूर्व माध्यमिक विद्यालय बाड़ा पौड़ी में सहायक अध्यापक पद पर आया। पर्यावरण, शैक्षिक क्षेत्र में अपार संभावनाएं दिखीं। धीरे-धीरे काम करता गया। प्रकृति से अपार प्रेम है. स्कूल को फूलों-पेड़ों से लाद दिया। जिस दिन जगमोहन सिंह रावत जी जो कि तब मेरे उप खण्ड शिक्षा अधिकारी थे, उप निदेशक सयाना जी, उप निदेशक श्री राणा जी मेरे विद्यालय में आए और आते ही वे मेरे बाग को देखकर बाग-बाग हो गए। विद्यालय के चारों तरफ घूमे और हमारी पीठ थपथपायी। खुशी के मारे मैं छिपकर संकुल केंद्र में आया। जैसे कोई विजेता विश्व कप जीतने पर खुशी जाहिर करने पर यस-यस करता है, वैसे ही मैंने हाथ झटक-झटक कर अपनी सारी तकलीफों को भुला कर यस-यस किया। मेरी आँखों में खुशी के आँसू छलक गये थे।

मेरा पहला विद्यालय सौंडल गाँव है, जहाँ मैंने दो माह का बी.टी.सी का विशेष प्रशिक्षण लिया। यहाँ सेवा देने के बदले मुझे कोई वेतन नहीं मिला। यहाँ मैं मात्र दो माह रहा। बांसई तल्ली, मल्ली व कनोठा खाल में सिर्फ दो साल। यदि मुझे कोई पूछे कि मेरे शैक्षणिक जीवन का सबसे बढ़िया विद्यालय कौन था, तब मेरा उत्तर होगा- प्राथमिक विद्यलय सौंडल गाँव। यहाँ मैं सिर्फ दो माह रहा। इस गाँव व यहाँ के लोगों की प्रशंसा में मैंने लकार लघु कथा संग्रह में एक कहानी लिखी-‘‘सुर्ज सौंडुळ’‘ जबकि बाड़ा गाँव में मैंने बीस साल गुजारे. भावनाओं का सैलाब उमड़ा। ताला लगाते हुए मेरा चेहरा विकृत था। मेरे साथी अध्यापक रजनीश अणथ्वाल ने कहा कि गुरु जी आपकी फोटो लेनी है। मैं असहज था। रजनीश ने कहा- मुस्कराए गुरुजी। चार्ज लेने वाले गुरु जी भी साथ थे। मैं भीतर-ही-भीतर रो रहा था। आज मैंने इस स्कूल के बंद होने में अपने उन हाथों का प्रयोग किया जिन हाथों ने यहाँ कुदाल, गैंती, हथौड़ी, सब्बल, दरांती चला-चला कर फूल उगाए। पेड़ों को जन्म दिया। बच्चों को सही राह दिखाई।

इस गाँव में सेवा देने के बाद मेरी विचार धारा यह बनी कि अभी भी अभिभावक अनपढ़ हैं। उनको वह शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे वे जान सकें कि सुशिक्षा ही उनका कल्याण कर सकती है, राजनीति नहीं। खाने-पीने की राजनीति गाँव-गाँव पसर गयी है। सभी क्षणिक लाभ को ही जीवन का सत्य मान बैठे हैं जो कि आगे के लिए घातक है।

मैं बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर जी का वंशज हूँ। स्कूलों का महत्व जानता हूँ। आज जार-जार रोया हूँ. आज मैंने अपना बहुत कुछ खोया है। किसी भी विद्यालय के बंद होने पर मुझे उसी तरह का दु:ख होता है जैसे किसी को अपने प्रिय जन की मृत्यु पर होता है।