आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह आदरणीय श्री भारतेंदु हरीशचंद्रजी ने कहा है,
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।”
अर्थात्….. निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति संभव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूलाधार है।
मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है।विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान, सभी देशों से जरूर लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा के द्वारा ही करना चाहिये।
मैं भारतेन्दु जी की इन पंक्तियों से बहुत प्रभावित हूँ क्यूँकि मातृभाषा आपके जन्म का हस्ताक्षर है। आप के मूल रूप को प्रभावित करती है। आप जितना खुलकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति अपनी मातृभाषा मे कर सकते हैं। उतना शायद किसी और भाषा में नहीं कर सकते वजह साफ़ है शब्दों की कमी, संकोच, समझने और समझाने में परेशानी।
अब एक सवाल मातृभाषा और हिंदी। मातृभाषा वो भाषा है जहां आपने जन्म लिया उस परिवेश में जो भाषा बोली जाती है यानी आपकी जन्मभूमि, आपके पूर्वजों की भाषा। हिंदी तो जन जन की भाषा है भारत का गौरव है, देश के माथे की बिंदी है, हमारा मान अभिमान है। तो हिंदी का दर्जा राष्ट्रभाषा का होना चाहिये किसी राज्य या प्रदेश की भाषा का नहीं।
यहाँ इतना सब लिखने का एक ही उद्देश्य है कि मेरी मातृभाषा गढ़वाली हैं और मैंने पहले ही कहा कि मातृभाषा आपके जन्म का हस्ताक्षर है,आपकी पूँजी आपका मान है। अगर मैं अपनी मातृभाषा का मान नहीं रख पाऊँगी तो राष्ट्रभाषा की तरफ अग्रसर हिंदी का मान कैसे कर पाऊँगी। इसी लिये प्रथम पूज्य मातृभाषा गढ़वाली भी अनुच्छेद की आठवीं सूची मे शामिल हो ये भी एक प्रयास है।
भीतरै पीड़ा भीतरी सुलगनड़ी
सुरक सुरक परदेशी ह्वेगैनी सभी
देशी बोली बँड़ गैनी लाटसाहब
दुधबोलि ग्वया लगाणी।
विडम्बना दुर्भाग्य की अपनी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं हम पर अकेले अकेले। विश्व पटल पर हिंदी की क्या दशा है हमसे छुपी नहीं है। अब तो फिर भी कुछ कामकाज हो रहा है,हिंदी के विकास के कुछ आसार भी नजर आ रहे हैं। हिंदी को बढ़ावा मिलना भी चाहिये। देश को आत्मनिर्भरता की ओर जागरूक है तो एक भाषा का होना जरुरी है जो सभी को बोलनी समझनी लिखनी आती हो तब तरक्की का पथ साफ होगा एक विविधता में एकता की मिसाल बन हिंदी विकास के पायदान पर अग्रसर होगी।
दोनो भाषाओं के प्रति मेरा अत्यंत स्नेह, आदर है, मेरी संवेदना, मेरे भावों की अभिव्यक्ति दोनो का साधन ये दोनो भाषाएँ हैं जो अपने अपने अस्तित्व के लिये परिश्रम कर प्रयासरत हैं। मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वास है कि दोनो ही अपना लक्ष्य हाँसिल कर देश को उन्नति की राह पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।
विश्व हिंदी दिवस की बधाई देते हुए मेरी कुछ पंक्तियाँ
आओ मिल एक संकल्प करें हम
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे हम।
क्यूँ छुपें संकोच करें हम
क्यूँ हिंदी को यूँ लाचार करें हम
उठा कलम हिंदी का प्रचार करें हम
निज भाषा पर मिल मान करें हम।
आओ मिल एक संकल्प करें हम
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे हम।
चलो बोलें और बुलवाएँ इसे हम
मीठे गीत लिख गुनगुनाएँ हम
हिंदी को अब गले लगायें हम
निज भाषा पर अभिमान करें हम।
आओ मिल एक संकल्प करें हम
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे हम।
तज निज भाषा कोई गति नहीं
लिख बोल इसे कोई कमी नहीं
आओ अन्दर के अहम को मारें हम
निज भाषा का अभिमान बने हम।
आओ मिल एक संकल्प करें हम
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे हम।
जन जन की प्रिय हिंदी माँ हमारी
क्यूँ रहे पिछड़ी लगे सबको बेचारी
उठा धरा से आकाश में परचम लहरायें हम
निज भाषा का स्वाभिमान बने हम।
आओ मिल एक संकल्प करें हम
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे हम।
विविधता मे एकता ही इसकी पहचान
हर ग्रंथ का शृंगार हम सबकी प्यारी
हिंदी माँ दुनिया मे है सबसे न्यारी
मिल ममता का क़र्ज़ चुकायें हम।
आओ मिल एक संकल्प करें हम
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे हम।