आत्मसंवाद व्यक्तिगत आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन

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कमल किशोर डुकलान

सर्वे भवन्तु सुखिनःभारत की दीर्घकालिक परम्परा को चरितार्थ करती है अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आभासी आत्मसंवाद भी व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन की क्रिया है।इसके माध्यम से योगी,ऋषि-मुनियों को बड़ी-बड़ी सिद्धियां प्राप्त हुई हैं।

कोरोना काल के प्रतिबंधों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर वासुदेव लाल मैथिल सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज ब्रह्मपुर,रुड़की(हरिद्वार) के द्वारा आयोजित आभासी (ऑनलाइन) आत्मसंवाद कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए विद्या भारती उत्तराखंड के प्रांतीय योग शिक्षा प्रमुख कुंज बिहारी भट्ट ने कहा कि सर्वे भवन्तु सुखिनःभारत की दीर्घकालिक परम्परा को चरितार्थ करती है। आत्मसंवाद भी व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन की एक क्रिया है। इसके माध्यम से बड़ी-बड़ी सिद्धियां अर्जित करने की शक्ति प्राप्त होती है। योग 5000 वर्ष प्राचीन भारतीय ज्ञान का प्रमुख अंग रहा है।

कोविड प्रतिबंधों में आभासी (ऑनलाइन) रुप से जुड़े सभी छात्र,अभिभावक,मातृशक्ति एवं कार्यरत आचार्य स्टाफ को वर्चुअली सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री कुंज बिहारी भट्ट जी ने कहां यद्यपि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं जहां लोग शरीर को तोड़ते-मरोड़ते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं। वास्तव में अगर देखा जाए तो योग की वो तमाम मुद्राएं मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमताओं की परतों को खोलने वाले योग विज्ञान का एक बहुत ही सतही पहलू है।जो हमारे शरीर में स्फूर्ति,मस्तिष्क को शान्त और आत्मा को परिष्कृत करता है। योग को अगर समग्र दर्शन के रूप में देखा जाए तो शारीरिक गतिविधियों के विपरीत मनुष्य के शरीर को अंदर-बाहर से  साफ रखने से योग सहायता प्रदान करता है। जिसे हम प्राणायाम कहते हैं। केवल वही व्यक्ति शारीरिक,मानसिक और आत्मिक अंतर को समझ सकता है,जो योग को अपनी दिनचर्या का अंग बनाता है।

यम,नियम,आसन,प्रत्याहार,ध्यान,धारणा समाधि ये अष्टांग योग शरीर,मन,बुद्धि के विकास में अत्यधिक सहायक है

विश्व योग दिवस के अवसर पर आभासी (ऑनलाइन) रुप से जुड़े जन समूह को सम्बोधित करते हुए प्रांतीय योग शिक्षा प्रमुख श्री कुंज बिहारी भट्ट जी ने कहा कि योग में हम जितनी भी महारथ प्राप्त करते जाएंगे हमें उतनी ही आन्तरिक आश्चर्य सिद्धियां अर्जित होती जायेंगी। यह कार्य केवल अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के दिन ही पूर्ण नहीं होने वाला है यह तो नित्यप्रति नियमपूर्वक सम्पूर्ण समर्पण के साथ सम्भव होने वाला है।इसके लिए यह भी अनिवार्य है कि हम अपने परिवार में योग को विकसित करने के सभी प्रयत्न प्रारम्भ करके समाज में आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सकेंगे। अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आज के इस आभासी (ऑनलाइन) आत्मसंवाद कार्यक्रम में आभासी (ऑनलाइन) रुप से जुड़े विद्यालय के प्रधानाचार्य, आचार्य परिवार एवं सभी पढ़ने वाले भैया बहिन,अभिभावक वृंद,मातृशक्ति का मैं आभार प्रकट करता हूं जिन्होंने आज के दिन अपने अमूल्य समय में से एक घंटे का समय निकालकर इस आत्मसंवाद कार्यक्रम को आत्मसात किया।

सरस्वती शिशु मंदिर के इकाई प्रमुख एवं आत्मसंवाद कार्यक्रम के संचालक,संयोजक कमल किशोर डुकलान ने बताया कि पिछले लम्बे समय से वैश्विक महामारी से भारत सहित पूरा विश्व प्रभावित रहा। इसके बचाव में समय-समय पर सरकारों द्वारा लगाएं गये प्रतिबंधों ने हमारे अन्दर अनेक विकृतियों को पैदा किया है। जिस कारण अनेक रोगों ने जन्म लिया है और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता निश्चित रूप से कमजोर हुई है। इस कोरोना काल में बनी बिषमता और विसंगतिपूर्ण जीवन को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाये रखने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस से पूर्व पिछले छःदिनों से विद्यालय के भैया बहिनों ने प्रतिदिन  पिछले 16 जून से आभासी (ऑनलाइन) रुप से प्रातः 6 से 7 बजे तक योग क्रियाओं में बड़े ही उत्साहपूर्वक प्रतिभाग किया लिए भैया बहिन बधाई के पात्र हैं साथ ही अभिभावक के नाते आपने जो योग की महत्ता को समझा और समयबद्ध अपने पाल्यों की नियमित उपस्थिति समय पर ऑनलाइन सुनिश्चित कराई इसके लिए विद्यालय परिवार आपका भी तहदिल से आभार प्रकट करता है।

वर्चुअल आत्मसंवाद कार्यक्रम लाइव प्रसारण में 250 भैया-बहिन,150 अभिभावक,23 का सभी आचार्य स्टाफ एवं सम्पर्कित अनेक सोशल मीडिया में पोर्टल न्यूज संवादाता कार्यक्रम से जुड़े रहे। कार्यक्रम को प्रभावी एवं उत्साह जनक बनाने के लिए विद्यालय की छात्रा तानिया ने योग मंत्र,निशु उपाध्याय ने एकल गीत तथा कार्यक्रम के अंत में बहिन दीपिका ने संगठन मंत्र का वाचन किया।अंत में विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री वीरपाल सिंह जी ने सभी आभासी रुप से जुड़े महानुभावों का आभार व्यक्त किया,वर्ग का समापन कल्याण मंत्र सर्वे भवन्तु सुखिन: की मंगल कामना के साथ सम्पन्न हुआ। ऊं कल्याणं मस्तु,शान्ति सुशांर्तिभवतु!!