उत्तराखंड में सांस्कृतिक-धार्मिक-सामाजिक परिवेश और भू-कानून को बचाने के लिए होने वाला है बड़ा बदलाव!

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देवभूमि उत्तराखंड के वैशिष्ट्य को कायम रखने और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से पर्वतीय क्षेत्र को “विशेष क्षेत्र अधिसूचित’ कर समुदाय विशेष के धर्म स्थलों के निर्माण पर प्रतिबंध और भूमि इत्यादि के क्रय-विक्रय के लिए विशेष प्राविधान किए जाने विषयक भाजपा नेता और पूर्व दर्जाधारी अजेंद्र अजय के पत्र पर गृह विभाग ने पुलिस महानिदेशक से भी अपनी सुस्पष्ट आख्या,अभिमत शासन को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। गृह विभाग की ओर से अनुसचिव ज्योतिर्मय त्रिपाठी ने प्रदेश के पुलिस महानिदेशक इस संबंध में पत्र लिखा है।

उल्लेखनीय है कि भाजपा नेता अजेंद्र ने विगत माह जुलाई में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर इस विषय को उठाया था और उन्हें एक पत्र सौंपा था। पत्र में उन्होंने इस हेतु एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग उठाई थी, जो इस संबंध में विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर नए कानून के प्रारूप को तैयार कर सके। पत्र में उन्होंने आध्यात्मिक व सुरक्षा कारणों के चलते विषय पर ठोस निर्णय लेने का अनुरोध किया था। पत्र में कहा गया है कि देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से अध्यात्म की धारा को प्रवाहित करता आया है।

हिंदू धर्म व संस्कृति की पोषक माने जाने वाली गंगा व यमुना के इस मायके में संतों महात्माओं के तप करने की अनगिनत गाथाएं भरी पड़ी हैं। यहां कदम-कदम पर मठ-मंदिर अवस्थित हैं, जिनका तमाम पौराणिक व धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। इससे उनकी प्राचीनता, ऐतिहासिकता, आध्यात्मिकता व सांस्कृतिक महत्व का पता चलता है। इन अनगिनत देवालयों के अलावा यहां श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री जैसे विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी स्थित हैं, जो सदियों से हिंदू धर्मावलंबियों की आस्था के केंद्र रहे हैं।

बिगत कुछ वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों से रोजगार एवं अन्य कारणों से वहा के मूल निवासियों द्वारा व्यापक पैमाने पर पलायन किया गया। इसके विपरीत मैदानी क्षेत्रों से एक समुदाय विशेष ने विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के माध्यम से वहां पर अपनी आबादी में भारी बढ़ोतरी की है। यही नहीं कई बार मीडिया एवं अन्य माध्यमों में बांग्लादेशी व रोहिग्याओं द्वारा घुसपैठ किए जाने की चर्चा भी सुनाई देती है। अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़े होने के कारण ऐसी परिस्थितियां देश की सुरक्षा की दृष्टि से आशंकित करने वाली हैं। समुदाय विशेष द्वारा तमाम स्थानों पर गुपचुप ढंग से अपने धार्मिक स्थलों का निर्माण भी किए जाने की चर्चा भी समय समय पर सुनाई देती हैं, इस कारण कई बार सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि बिना पहचान व सत्यापन के रह रहे लोगों के कारण आज पर्वतीय क्षेत्रों में अपराधों में वृद्धि हुई है। इसके साथ ही “लव जिहाद” जैसी घटनाएं भी समय-समय पर सुनाई देने लगी हैं। सामरिक दृष्टि से उत्तराखंड का यह हिमालयी क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों की विशिष्ट भाषाई व सांस्कृतिक पहचान रही है। अत्यंत संवेदनशीन सीमा के निकट लगातार बदल रहा सामाजिक ताना-बाना आसन खतरे का कारण बन सकता है।