गरुड़गंगा,जहां की शिला घर में रखने पर,हर बाधा हो जाती है दूर

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आचार्य भुवन चंद्र उनियाल,धर्माधिकारी,श्री बदरीनाथ

गरुड़ गंगा, पीपलकोटी से श्री बदरीनाथ मार्ग में 3 किलोमीटर पर स्थित है, इस गांव को गरुड़गंगा या पाखी भी कहा जाता है। गरुड़ के पंख जैसा यह गांव इसके बीच अलकनंदा की और उतरती हुई गरुड़ गंगा प्रसिद्ध नदी है।

बदर्या दक्षिणे भागे गन्धमादन पर्वते।

गरूडस्तप आतेपे हरिवाहनकाम्यया।।

(स्कंद पुराण, वैष्णव खण्ड, अध्याय 4, श्लोक 3)

स्कन्द पुराण के अनुसार गरुड़ जी ने श्री बदरीनाथ धाम के दक्षिण भाग में स्थित गंधमादन पर्वत पर 30,000 वर्षों तक दिव्य तपस्या की हैं,और भगवान विष्णु का वाहन होने का सौभाग्य प्राप्त किया।

त्रिंशद्वर्षसहस्त्राणि, हरिदर्शनलालसः।

ततस्तु भगवान्साक्षात् , पीतवासा निजायुधः।।

(स्कंद पुराण, वैष्णव खण्ड, अध्याय 4, श्लोक 5)

आज भी यहाँ गरुड़ मंदिर विराजमान है और कहा जाता है कि इस गरुड़ गंगा के पत्थर को घर में रखने पर सर्प-बाधा दूर हो जाती हैं, यहाँ के लोग सर्पदंश पर पत्थर को दवा के रूप में प्रयोग करते हैं।

गरुड़ गंगा शिला भागो, यत्र तिष्ठति मत्प्रिये।

न तत्र सर्पज भयं,विष-व्याधिर्न जायते।।

बदरीं त्वं प्रयाहीती,नारदेन निषेविताम्।

स्नानं नारदतीर्थादावुपवासत्रयं शुचिः।।

कृत्वा मद्दर्शनं तत्र, सुलभं ते भविष्यति।।

(स्कंद पुराण, वैष्णव खण्ड, अध्याय 4, श्लोक 24)

गरुड़ जी वरदान प्राप्त करने के बाद श्री बदरीनाथ धाम पहुँचे और गरुड़ शिला नामक स्थान पर 3 दिन की तपस्या करने के बाद भगवान बदरीनाथ जी से गरुड़ जी का पुनः साक्षात्कार हुआ।