जन्मदिन विशेषः- धरती कू धर्म अर मनिखी कू मर्म तैं समझौण,बतौण अर गौंण वला नरेंद्र सिंह नेगी

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संजय शर्मा दरमोड़ा

उत्तराखंड के लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों को रेडियो पर सुनने की आदत कब और कैसे पड़ी यह याद नहीं आ रहा है। लेकिन इतना तो जरूर याद है जब मैंने उनके गीतों की पहली कैसेट ‘म्यारा डिबरा हर्च गयेनि’ सुनी तो मुझे नेगी जी की गढ़वाली बहुत अच्छी लगी। गीत शुरू होने से पहले नेगी जी का पौड़ी की गढ़वाली भाषा में जो संबोधन आता था वह मुझे कुछ कुछ याद आन पड़ रहा है। नेगी जी का संबोधन कुछ इस तरह से था। मेरी गढ़वालि गीतूं की ईं पैली माला मा बनि-बनि का फूल गंठयां छिन। कुछ गीत खुदेड छिन तो कुछ नचणया छिन। अर कुछ गीत इना भी छिन जू कुतगलि लगै जाला। त लयावा सुणा पैलू गीत ईं धरती माता कू नाम।

‘ जो जस देई दैंणू हवे जैई देसू मा का देसा मेरो गढ़देसा हो। बदरी-केदार भी तेरो जस गांदिन, पंचनाम दयबता भी तवेमा सेवा लांदिन, दयबतों कू देसा हो मेरा गढ़देसा हे…अपनी पहली कैसेट से लेकर सीडी तक और सीडी से लेकर आज के यूट्यूब तक धरती के धर्म और मनुष्य के मर्म की बात को निर्बाध गति से अभिव्यक्त कर रहें हैं आदरणीय नेगी जी। सन् 1974 में नरुभै ने गीतों को गंठयाना (रचना/लिखना) शुरू किया था। आज नेगी जी की रचनाधर्मिता निरंतरता के साथ अपने पांच दशक की यात्रा की ओर अग्रसर है। इतने लंबे समय से लिखते रहना और वह भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करते रहना अपने आप में एक साधना है, घोर तपस्या ही है गढ़वाली भाषा और गढ़वाल की। गढ़वाली भाषा में एक कहावत प्रचलित है कि बल कखि नाक ही नीच त कखि सूनू ही नीच। मैंने भी अपने जीवन में बहुत से कलाकारों को देखा,सुना और समझा है।

अगर कोई अच्छा गीतकार है तो उसका गायन और संगीत पक्ष कमजोर है और अगर किसी का गायन और संगीत पक्ष बेहतर है तो लेखन पक्ष कमजोर है। इस मामले में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी सौभाग्यशाली हैं। मेरे आंकलन के अनुसार नेगीदा जितने अच्छे कवि हैं उतने ही अच्छे गायक और संगीतकार भी हैं।

मां सरस्वती के वरदपुत्र नरेंद्र सिंह नेगी की रचनाधर्मिता का फलक बहुत विस्तार लिए हुए है। गीत रचने के लिए जिस विषय वस्तु का वो चयन करते हैं वह अपने आप में बेजोड़ है, अनुपम है। नेगीजी के प्रत्येक गीत में पहाड़ और पहाड़ी मानुष का अश्क होता है यहां पर यह बात मैं दावे के साथ लिख रहा हूं। नेगीजी के गीतों की बात, विचार और बुलण बचयाण में एक अलग ही रसयांण है। जब वो अपने हीरो की मुखारविंद से हीरोइन की तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं तो हीरोइन की चंचलता और अदाओं को एक अनोखे अंदाज़ में कुछ इस तरह से सुनाते हैं कि ‘ यूं रूप यू रंग, या ज्वानि की उमंग, आज कुजाणि, कुजाणि कैकि मवसि धरदी धौं ढुंगम…और फिर जब नेगी जी का हीरो अपनी जवानी की बात करता है तो कुछ इस तरह से ऐलान करता है कि बल ‘ टक्क त जून पर लगीं च मी भुयां किल्है देखू हौसिया उमर च मेरी कुछ ना बोला मैकू… नायिका के मन के घंघतोल(असमंजस) को मिटाने के लिए नेगी जी का चतुर,चालाक और थोड़ा सा पगला, थोड़ा दीवाना नायक कुछ इस तरह से समझता कि पन्द्रह-पचीसी दिन सदानि नी रैंदा, ऐ जादी भगयानि ईं ज्वानि का छौंदा… जवानी के गीतों की बात चले और नेगी जी की कलम इतने में ही मान जाए ऐसा भला कैसे हो सकता है उनका नायक तो यहां तक पूछ बैठता है कि बल तैं ज्वानि कू राजपाठ बांद हे बांद हम भी दिखला कब तैं रांद, हांजी हम भी दिखला कब तैं रांद…

ये तो बात हूई नरेंद्र सिंह नेगी जी के रोमांटिक नगमों की। अब बात करते हैं उनके खुदेड गीतों की। खैरी और विपदा के गीतों को लिखने और गाने में नेगी जी को मानों मां सरस्वती ने विशेष वरदान दिया हो। वह धरती की विपदा की बात करते हैं, वह ससुराल में परेशान बेटी की बात करते हैं, वह बांध के आगोश में समाते ऐतिहासिक टिहरी की खैरी लगाते हैं। यहां तक की प्रसव वेदना से तड़पती चिड़िया की वेदना को भी नेगी जी ने अपने गीतों में स्थान दिया है।

मेहनतकशों के शोषण के विरोध को वो इस तरह से कहते हैं कि हम भी उकरला कभी द्वी हथून हमरि भी लगली कभी घतासरी सदानि नी रैंण रै झींतू तेरी जमादरी….

और जब नेगी जी आहवान गीत रचते हैं तो तब तो इंसान से लेकर भगवान तक का आहवान कर डालते हैं। उत्तराखंड आंदोलन के दौर में लिखे इस आहवान गीत को तो देखिएगा जरा इसमें देवताओं तक को जगाने का काम नेगी है बल जाग जाग हे उत्तराखंड हे भैरौ नृसिंह बजरंग।

लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी पर लिखने बैठता हूं तो मेरी स्थिति क्या भूलूं क्या याद करूं जैसी हो जाती है। कभी-कभी दिल चाहता है कि अपने और आप सबके प्रिय नेगी जी पर एक किताब ही लिख डालूं लेकिन फिर सवाल आता है कि मेरी लेखनी क्या निसाब कर पाएगी इतने बड़े कलाकार के इतनी व्यापक रचनाधर्मिता, इतने बड़े रचना संसार के साथ।

लोकगायक आदरणीय नरेंद्र सिंह नेगी जी के जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। बाबा केदार की कृपा आप पर सदानि बनीं रहे भैजी।