आखिर मनुष्य की बुद्धि क्यों होती है भ्रमित,इस भ्रमित बुद्धि को काबू करने का सबसे सुगम मार्ग क्या है ?

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आचार्य शिवप्रसाद ममगाईं ,ज्योतिष पीठ व्यास पद से अलंकृत

ध्यायतो विषयान्पुंस: सग्डंस्तेषूपजायते

सग्डंत्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोभिजायते

सबसे पहले बिषयों का चिन्तन होता है। जिससे आसक्ति उत्पन्न होती है। फलस्वरूप बिषयों की कामना होती है,और कामना मे विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है,और क्रोध से स्वभाव मूढ हो जाता है। तत्पश्चात स्मृमति भ्रम होने से बुद्धी का नाश हो जाता है। बुद्धी का नाश होने से मनुष्य का बुरी तरह पतन हो जाता है।

बिषय कुपथ्य पाई अंकुरे

मुनिहु हृदय का नर बापुरे

बिषय का संक्रमण यदि मुनियों के हृदय में हो जाये तो बिषय के अंकुर मुनियों में भी उत्पन्न हो जाते है फिर साधारण मनुष्य की बात क्या!

बिषय बहुत भयंकर बीमारी है। बिषयों वशीभूत होकर बहुमूल्य मानव जीवन बेकार गवां देते है। जीवन भर कंकड पत्थर ईकट्ठा करते रहते है,और मानव जीवन के मूल लक्ष्य से भटके रहते है। भौतिक सुख(जो वास्तविक सुख है ही नही) को पाने की लालसा में जीवन खर्च कर देते है

करम बचन मन छाड़ि छलु जबलगि जनु न तुम्हार

तब लगि सुख सपनेहुनहि किए कोटि उपचार

मुनि भरद्वाज जी ने कहा जब तक कर्म वचन और मन से छल कपट त्याग कर मनुष्य परमेश्वर के शरणागत नहीं हो जाता चाहे करोड़ो उपाय करले स्वपन में सुख नही पा सकता।

यह आवश्यक नहीं कि हम सब काम छोड़ कर केवल भजन ही करते रहे नहीं।मन,वचन,कर्म से हम ईश्वर को समर्पित हो जाये। यदि हमारे सभी कर्म ईश्वर को समर्पित होगें तो हमसे बुरे कर्म होगे ही नहीं। यदि भगवान के भोग प्रसाद के लिये भोजन बनायेगे ते शुध्द सात्विक भगवान के लिये अच्छा ही भोजन बनायेगे। मन को भगवान में लगा देगे तो अच्छे धार्मिक विचार ही मन में होगे। धन को ईश्वर को समर्पित करगे तो धन का दुर्व्यसन में दुरोपयोग नहीं हो।

जिसने अपने आपको ईश्वर से जोड़ लिया। उसका जीवन सार्थक हो गया यही जीवन लक्ष्य है।