कृष्ण चंद्र महादेविया की लघुकथाएं

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कृष्ण चंद्र महादेविया

कृष्ण चंद्र महादेविया का नाम हिंदी साहित्य में नयी सोच के साथ चलने वाले लेखकों में लिया जाता है। आपका जन्म 23 जून 1960 को सुंदरनगर हिमाचल प्रदेश के महादेव गांव में हुआ। ‘उग्रवादी’, ‘बेटी का दर्द’, ‘तुम्हारे लिए’लघुकथा संग्रह प्रकाशित है। पहाड़ी लोकोक्तियां,लोक नाट्य,लोकमुक्तक गीत,लोक साहित्य पर भी आपकी पुस्तकें प्रकाशित है। इसी के साथ देश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथायें, आलेख,कहानियां प्रकाशित होते रहते है। यहां प्रस्तुत है कृष्ण चंद्र महादेविया की दो लघुकथाएं।

(1)

   कोमल मन

पाठशाला की बर्दी में नन्हा सा बालक अपनी नानी के आगे-आगे दौड़ता सा सड़क पर पहुंच कर सड़क पर पहुंचकर एक घड़ी रुका फिर चलते-चलते बोला-” नानी वह प्रिया है न?”   “कौन प्रिया बेटा ?”

“मेरी क्लास में पढ़ती है |मुझे रोज छेड़ती है , मेरे कपड़े भी गंदे कर देती है |” धीरे धीरे चलते नन्हे बालक ने बड़े लुभावने से नानी को बताया |

“दो चांटे मारने हरामजादी को | तू डरता क्यों है उस रांड से |”   |एकाएक अपने नेत्रों से चिंगारियां निकालते और बुरा सा मुंह बनाते नानी ने कहा तो नन्हा  बालक रुक कर अपनी नानी को देखता रह गया | नानी के बिगड़े चेहरे ने उसके कोमल मन को बहुत चोट पहुंचाई थी , यह बालक के चेहरे से साफ था |

“अब खड़ा क्यों है , आगे चल न ? “

” आप गंदी है नानी ,आपके साथ में स्कूल नहीं आया करूंगा | आपको पता है ?अच्छे बच्चे कभी झगड़ा नहीं करते |”

नन्हे बालक ने नानी से अपना बस्ता और पानी की बोतल ली और स्कूल की ओर दौड़ गया | नानी को काटो तो खून नहीं था |

(2)

” यह आपके सपने की कोठी मां, मुझ बेटे की ओर से यह भेंट स्वीकार कीजिये |”

” आशीर्वाद बेटा,आज मैं बहुत खुश हूं |”

” मां , आज आपके इस पुत्र ने आपके दूध का रीण भी उतार दिया है |”

” बेटा अरूण , बर्षात की वह भयानक तुफानी रात,जब भूख से

व्याकुल ,वर्षा से भीगते सारी रात जर्जर  मकान की दहलीज पर खड़े-खड़े तुझे छाती से चिपकाए काटी थी | यह कोठी तो उस रात की कीमत भी नहीं पुत्तर |संसार की कोई भी संतान मां के दूध का ऱिण कभी क्या चुका पाएगी |”

” मां ……! मुझे क्षमा कीजिए |”