क्षेत्रीय दलों के साथ जम्मू-कश्मीर पर विमर्श

0
886
कमल किशोर डुकलान

केंद्र शासित क्षेत्र की सांविधानिक स्थिति तय करने तथा वहां पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने के लिहाज से काफी अहमियत रखती है। राज्य में पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया जल्द से जल्द बहाल हो और वहां के लोग अपनी जिम्मेदार लोकप्रिय सरकार चुन सकें। इसके लिए क्षेत्रीय दलों को भी वहां के लोगों को भरोसे में लेकर अमन-चैन कायम रखना होगा।

जम्बू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 व 35-ए की समाप्ति एवं राज्य का दर्जा समाप्त किए जाने के बाद से ही जम्मू-कश्मीर के भविष्य को लेकर सबकी नजरें केंद्र सरकार के अगले बड़े कदम पर टिकी थी। ऐसे में, प्रधानमंत्री नरेंद्र नरेंद्र मोदी द्वारा जम्मू-कश्मीर के मसले पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक एक बड़ी पहल है। यह बैठक केंद्र शासित क्षेत्र की सांविधानिक स्थिति तय करने तथा वहां के पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने के लिहाज से काफी अहमियत रखती है।

जब से राज्य में अनुच्छेद 370 हटा था,तब से ही काफी आशंकाएं जताई जा रही थीं कि  यहां आतंकी बडे़ पैमाने पर उत्पात मचाएंगे और पाकिस्तान इस मसले पर भारत के खिलाफ नए सिरे से भारत के विरोधी देशों की गोलबंदी की कोशिश करेगा,लेकिन भारत सरकार की दूरदर्शी कूटनीति की बदौलत न सिर्फ पाकिस्तान,बल्कि उसके सदाबहार मित्र चीन को भी एक से अधिक बार संयुक्त राष्ट्र में मुंह की खानी पड़ी। जहां तक,आतंकी वारदात का प्रश्न है,तो वे भले ही पूरी तरह बंद न हो सकी हों,लेकिन सुरक्षा बलों की सख्ती और चौकसी ने दहशतगर्दों को किसी बड़ी घटना को अंजाम नहीं देने दिया।

जम्मू-कश्मीर के मामले में सरकार को लगा वक्त इसकी संवेदनशीलता को खुद-ब-खुद उजागर कर देता है। हालांकि,वहां हालात को सामान्य बनाने की दिशा में चरणबद्ध तरीके से लगातार छूट दी जाती रहीं,और उनका असर भी देखने को मिला। पिछले साल दिसंबर में पहली बार हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) के सफल चुनाव इसके प्रत्यक्ष परिणाम हैं। 20 जिलों में हुए उन चुनावों में अच्छी संख्या में लोगों ने मतदान में भाग लिया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस व पीडीपी समेत सात दलों से बने गुपकार गठबंधन ने 13 जिलों में और भाजपा ने छह में जिला विकास परिषद (डीडीसी) में जीत दर्ज की थी। इस तरह,राजनीतिक प्रक्रिया का आगाज तो वहां पहले ही हो चुका है। पिछले अगस्त से ही राजनैतिक परिपक्व राजनेता मनोज सिन्हा को उप-राज्यपाल बनाए जाने के साथ ही स्पष्ट हो गया था कि केंद्र अब वहां के लोगों को राजनीतिक नेतृत्व सौंपने को लेकर गंभीर हो चला है। यदि  पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से कोरोना महामारी ने देश को प्रभावित न किया होता,तो जम्मू-कश्मीर को लेकर स्थितियां अब तक काफी साफ हो चुकी होती।

इस बीच कांग्रेस नेता व पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटाने की मांग की है। वैसे, गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में पहले ही यह आश्वासन दे चुके हैं कि सही वक्त आने पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटा दिया जाएगा। इसलिए इस मामले में सरकार और विपक्ष में नीतिगत मतभेद नहीं है।अब जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों का रुख क्या है,इसको  लेकर सबकी नजरें प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तावित बैठक पर सबकी नजरें होगी। हालांकि,नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी समेत तमाम पार्टियों को यह एहसास हो गया है कि अब व्यावहारिक राजनीति के सहारे ही जम्बू-कश्मीर में आगे बढ़ा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर के लोगों को तरक्की की मुख्यधारा में शामिल होने का उतना ही हक है,जितना देश के किसी अन्य प्रदेश के नागरिक का है। अब अधिक समय तक जम्मू-कश्मीर को राजनीतिक गतिरोध का बंधक नहीं बनाया जा सकता है। केंद्र सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती तो है ही कि वहां पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया जल्द से जल्द बहाल हो और वहां के लोग अपनी जिम्मेदार लोकप्रिय सरकार चुन सकें। पर इसके लिए क्षेत्रीय पार्टियों को भी वहां के लोगों को भरोसे में लेकर अमन-चैन कायम रखना होगा।

इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं

फोटो साभार गूगल