एक आम व्यक्ति की बड़ी जीवन यात्रा,’काsरी तू कब्बि ना हाsरि’

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दिनेश कर्नाटक

जीवनियां आमतौर पर किसी क्षेत्र विशेष में कामयाब हुए लोगों पर लिखी जाती है। ऐसे लोगों से परिचित होने की वजह से पाठक जीवनी पढ़ने को उत्सुक होते हैं ताकि उनके जीवन के ओर-छोर से परिचित हो सकें। मगर सभी कामयाब लोगों को हम जान नहीं पाते। बहुत से लोगों की कामयाबी कभी सामने नहीं आ पाती।

लेखकः- ललित मोहन रयाल

‘काsरी तू कब्बि ना हाsरि’ अलग तरह की जीवनी है। इसके केंद्र में लेखक के पिता स्व0 मुकुंद राम रयाल हैं, जो कोई चर्चित या जाने-माने व्यक्ति नहीं हैं। वे स्कूली शिक्षा में अध्यापक रहे और एक आम गृहस्थ जो अपने काम को सही से करने और जीवन को संतुलन के साथ जीने पर विश्वास रखता है। आप कह सकते हैं कि इसमें कौन सी बड़ी बात है। ऐसा जीवन तो सभी का होता है।

कई बार पद और पेशे में साधारण होते हुए भी कोई व्यक्ति अपने जीवन, विचारों तथा आदर्शों के कारण असाधारण हो सकता है। यह जीवनी ऐसे ही असाधारण शिक्षक तथा पिता की है। यह ऐसे व्यक्ति की जीवनी है, जो अपने जीवन संघर्ष तथा अध्ययन से अपने उसूल बनाता है और जीवन भर उन पर चलता है। स्व0 मुकुंद राम रयाल ने शिक्षा के लिए घर त्यागा। तमाम मुसीबतों से गुजरते हुए शिक्षा पूरी की तथा शिक्षक का अपना पसंदीदा पेशा अपनाया। पढ़ने-जानने तथा सीखने की ललक उनमें ताउम्र बनी रही। दूरस्थ अथवा दुर्गम में पदस्थ होना उनके लिए कभी असुविधा का कारण नहीं बना, बल्कि वे ऐसी जगहों में अपने होने को वहां के बच्चों के लिए आवश्यक मानते रहे।

यह जीवनी एक प्रकार से एक शिक्षक की अंतरंग कथा भी है। जिसके जरिए दूरस्थ क्षेत्रों में रहकर शिक्षण करने वाले शिक्षक के संघर्ष को समझा जा सकता है। स्व0मुकुंद राम रयाल की जीवन यात्रा बताती है कि सुविधा के आधुनिक केंद्रों से दूर रहकर भी कैसे एक शिक्षक अपने शिक्षण कर्म को सार्थकता प्रदान कर सकता है।

लेखक ने पारदर्शी भाषा तथा पैनी दृष्टि से शिक्षक पिता के जीवन तथा विचारों को जीवंत कर दिया है। यूं तो यह पुस्तक गढ़वाली भाषा के आस्वाद तथा अपनी विषयवस्तु के कारण सभी के लिए पठनीय है, लेकिन अपने एक समानधर्मा के जीवन को जानने-समझने के लिए शिक्षक-शिक्षिकाओं को इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए। यह जीवनी उन्हें अपने पेशे के प्रति आत्मविश्वास तथा आगे के लिए रास्ता दिखाएगी।

काव्यांश प्रकाशन से प्रकाशित उत्तराखंड के वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी ललित मोहन रयाल की पुस्तक ‘काsरी तू कब्बि ना हाsरि’ की यह कृति हिंदी-गढ़ावाली भाषा के अभिनव प्रयोग के साथ-साथ एक आदर्शवादी शिक्षक के जीवन संघर्षों की गाथा है। जो कई यात्राओं के पड़ाव से गुजरते हुए। अपनी यात्रा के अंत में विजय होता हैं।

पुस्तकः-काsरी तू कब्बि ना हाsरि (जीवनी)

लेखकः- ललित मोहन रयाल

प्रकाशन-काव्यान्श प्रकाशन,वाशिष्ठ सदन रेलवे रोड ऋषिकेश (उत्तराखंड) मूल्य 195 रु मात्र