ऋषि परंपरा के संवाहक नरेन्द्रदत्त जमलोकी जी को विनम्र श्रद्धांजलि!

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बीना बेंजवाल

वीणा! ऋषि परंपरा के ऐसे विरले संवाहक मनीषी जिनकी सुसंस्कृत वाणी से मेरे लिए उच्चरित इस संबोधन को ही मैंने अपने हस्ताक्षर बना लिया। बाल कविताओं एवं प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से कालसी में उनकी ज्ञानराशि में से जो प्रसाद बचपन में मिलना प्रारंभ हुआ था, जीवन के पचास वसंत पार कर जाने के बाद भी गंभीर होकर दृष्टि एवं ज्ञान समृद्ध करता हुआ अभी तक जारी था। केदारघाटी के गाँधीवादी पुरोधा श्री नरेन्द्रदत्त जमलोकी जी का जन्म रविग्राम में 4 सितंबर,1933 को श्री ब्रह्मानंद जी एवं श्रीमती शारदा देवी जी के घर हुआ था। गाँव के स्कूल से ही प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद आठवीं की परीक्षा आपने ऊखीमठ से पास की। आपके चाचा जी श्री फतेहराम जमलोकी जी बहुत प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य थे और खुर्जा में रहते थे। हाईस्कूल की परीक्षा उन्हीं के साथ रहते हुए उत्तीर्ण की।

आगे जाकर आपने सर्वोदयी विचारधारा को अपनाकर अपना जीवन समाज हित समर्पित कर दिया। ग्रामदान एवं भूदान आंदोलन के प्रचार का संकल्प लेकर उसे ही जीवन का उद्देश्य बना लिया। डॉ.ओमप्रकाश जमलोकी लिखते हैं, ”सन 1955 में महादेवी कन्या पाठशाला देहरादून में रहने से आगे जीवन की दिशा तय हो गई। शिविर में गांधी जी के शिष्य वियोगी हरि, विमला ठक्कर, दादा धर्माधिकारी के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा और आप सर्वोदयी बन गए।”

आपने श्री चंडीप्रसाद भट्ट, श्री सुंदरलाल बहुगुणा एवं श्री मानसिंह रावत जी के साथ कई पदयात्राएँ कीं। जन आंदोलनों में आपकी उल्लेखनीय भूमिका रही। आपने गढ़वाल विश्वविद्यालय आंदोलन में बढ़-चढ़कर भागीदारी की। सामाजिक आंदोलनों में आपकी इस भूमिका ने इतिहास में कई स्वर्णिम पृष्ठ जोड़े । सौडी़ नामक कस्बे में जन सहयोग से शराबबंदी हेतु ऐसा आंदोलन चलाया कि शराब के ठेके बंद हो गए। यही नहीं सौडी़ का नाम भी बदलकर विनोबापुरी रख दिया गया। जामू फाटा के जंगलों में जो चिपको आंदोलन चलाया गया, उस जन आंदोलन में भी आपका अद्भुत योगदान रहा।

समाज सेवा का कठिन व्रत आपको बहुत दिनों तक भला एक जगह पर कैसे टिकने देता। सामाजिक कार्यों हेतु यात्राएँ जारी रहतीं। कभी रविग्राम, कभी फाटा, कभी गोपेश्वर, कभी देहरादून तो कभी लखनऊ। इसी संदर्भ में आपका हमारे गाँव देवशाल भी आना होता। होश संभालने पर ज्ञात हुआ कि आपका ननिहाल हमारे परिवार में है और इसीलिए हम आपको ताऊ जी कहते। कालसी में आपकी एक बौद्धिक छवि मानस पटल पर अंकित थी। समझ विकसित होने पर जाना कि क्यों आपकी वो छवि इतनी गरिमामयी एवं आपका व्यक्तित्व औरों से बिल्कुल अलग इतना हिमालयी था। रहन-सहन से लेकर खानपान, वेशभूषा सबमें गाँधीवादी विचारधारा का वही उदात्त रूप। गाँव देवशाल आकर आप जब कभी हमारी यानी अपने मामाओं की डंड्याळी में बैठते थे तो माया-मोह, राग-द्वेष से कोसों दूर वही वीतरागी का एक विराट व्यक्तित्व लिए हुए आपकी उपस्थिति रहती। सामाजिक उत्थान की बातें होतीं, तब गाँव में प्राथमिक विद्यालय खुलवाने की बात होती। गाँव की समस्याओं पर चर्चा होती। ताऊ जी के आने पर पूरा माहौल ही बदल जाता। बातों के विषय ही अलग हो जाते। समय के साथ अब पिता जी के न रहने एवं वृद्धावस्था के कारण आपका देवशाल क्या कहीं भी आना-जाना बहुत कम हो गया था। ज्यादातर फाटा में रहते हुए ही आप अध्ययन, चिन्तन, मनन एवं यथाशक्ति सामाजिक कार्यों में लगे रहे।

पत्रकारिता से जुड़े होने के कारण लेखनी के माध्यम से भी आपके व्यक्तित्व की ऊँचाई से रूबरू होने का मौका मिलता रहा। एक सजग पत्रकार के रूप में स्थानीय समस्याओं को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उठाकर शासन स्तर तक पहुँचाना एवं उनके निराकरण तक अपना प्रयास जारी रखना, ये कोशिश सदैव आपकी रही। जिसमें सफलता भी मिलती रही। तब तक रुद्रप्रयाग अलग जिला नहीं बना था। गोपेश्वर आने पर आपके झोले में रखे कागजों के पुलिंदों को पढ़ने का जब अवसर मिलता तो जन समस्याओं के समाधान के प्रति आपकी प्रतिबद्धता नतमस्तक कर देती। मुझे व्यक्तिगत रूप से सदैव आपका मार्गदर्शन मिलता रहा। आप जैसे तपस्वी का व्यक्तित्व एक महावृक्ष की तरह अपनी स्नेहाशीषी छाँव में लेखन हेतु सदैव प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता रहा। यहाँ तक कि मेरी एक बहुत बड़ी कमजोरी मेरी भावुकता के प्रति भी आप मुझे सजग करते रहे। आपके लिखे पत्र आपके स्नेहाशीष के रूप में सदैव मेरे साथ रहेंगे।

आध्यात्मिक चेतना से पोषित जनजागृति की आपकी भावना ने आपको कभी भीड़ का हिस्सा नहीं बनने दिया। फाटा में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय एवं अस्पताल खुलवाने हेतु आपने अथक प्रयास किया। केदारघाटी में शिक्षा मंदिरों की स्थापना हेतु चलाए गए आंदोलनों में आपका योगदान अविस्मरणीय है। देववाणी संस्कृत विद्यालय त्रियुगीनारायण, जवाहर नवोदय विद्यालय बणसू, जाखधार ऐसे ही विद्यालयों में से हैं। उस समय क्षेत्र में कोई महाविद्यालय नहीं था। अगस्त्यमुनि में उसे खुलवाने के लिए भी आपका विशेष प्रयास रहा।

1987 से 2013 तक कालिदास जन्मभूमि स्मारक समिति की बैठक में भाग लेते हुए समिति के विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। 2013 की केदारनाथ आपदा के समय आप पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष श्रीनगर गढ़वाल श्री कृष्णानन्द मैठाणी, डॉ. उमा मैठाणी आदि दस साथियों सहित कविल्ठा में थे। उस भयावह दौर के विषय में आप बताते थे कि कैसे कालीमठ पहुँचकर रूपा लाला जी की दुकान में पणधार्यों के पानी की चाय बनाई। उस समय कालीमठ में 17-18 लोग ही थे। 24 जून को बड़ी मुश्किल से वहाँ से आगे बढ़ पाए।

लेखनी के धनी आपने इस जीवन यात्रा में कई पत्र-पत्रिकाओं में अवैतनिक संवाददाता के रूप में कार्य किया। युगवाणी, देवभूमि, दैनिक जयन्त, कर्मभूमि, सत्यपथ, अनिकेत, नया जमाना आदि पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख छपते रहे। महाकवि कालिदास जन्मभूमि स्मारक समिति कविल्ठा द्वारा वर्ष 1999 के कालिदास सम्मान से आपको सम्मानित किया गया। महात्मा गांधी जी की 150वीं जयन्ती के अवसर पर सी. पी. भट्ट विकास एवं पर्यावरण केन्द्र, सर्वोदय केन्द्र गोपेश्वर चमोली द्वारा गांधीवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार हेतु आपके उल्लेखनीय योगदान के लिए आपको सम्मानित किया गया। प्रख्यात पर्यावरणविद् श्री चण्डीप्रसाद भट्ट जी द्वारा यह अलंकरण आपको दिया गया। चन्द्रप्रकाश भट्ट स्मृति संस्थान द्वारा भी रुद्रप्रयाग जनपद में पत्रकारिता में आपके समग्र अवदान को देखते हुए आपको प्रथम ‘पत्रकार चन्द्रप्रकाश भट्ट’ स्मृति सम्मान दिया गया। सरलता, सादगी एवं निस्पृहता की साकार प्रतिमूर्ति आपको सम्मानित करके कोई भी संस्था स्वयं भी गौरवान्वित होती।

इस उम्र में भी सामाजिक सरोकारों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता को देखते हुए बावन द्वादशी व जनहित विकास समिति त्रियुगीनारायण द्वारा 2019 में आपको ‘केदारघाटी सम्मान’ से विभूषित किया गया। उम्र के इस पड़ाव में भी आपकी तपस्वी-सी कठिन जीवनचर्या, निस्पृहता, समाज हित सतत चिन्तनशीलता श्रद्धाभिभूत कर देती थी। युग ऋषि जमलोकी जी अब हमारे बीच नहीं रहे। सादर नमन!