‘तप्त कुंड’ जो अनादिकाल से कर रहा है भक्तों के कष्ट दूर

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चार्य भुवन चन्द्र उनियाल ,धर्माधिकारी,श्री बदरीनाथ धाम

श्री बदरीनाथ धाम में जहां चारों तरफ ठंड ही ठंड है। वहां भगवान की गर्मपानी की व्यवस्था से सभी लोगों को राहत मिली हुई है। वर्तमान में कई जगहों पर लाइट न होने के कारण गीजर भी नहीं चल रहे हैं और नल का पानी बर्फ बन चुका है। लेकिन भगवान की यह व्यवस्था कभी जाम नहीं होती चाहे दुर्गम से दुर्गम भी परिस्थितियाँ क्यों ना आ जाए। यही अंतर होता है एक मानव की व्यवस्था और भगवान की व्यवस्था में,जो शाश्वत है जो नित्य है। उनकी व्यवस्थाएं भी नित्य होते हैं।

अनादिकाल से यह तप्त कुंड इसी प्रकार भक्तों के कष्ट दूर कर रहा है। द्वापरयुग में भी भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव जी को जब बद्रिकाश्रम भेजा तो इसी कुंड के निकट निवास और तपस्या करने की आज्ञा दी थी। इसी लिए कहते हैं कि श्री बदरीनाथ जैसा तीर्थ ना हुआ और ना भविष्य में कभी होगा।

तप्त कुंड जिसमें स्नान करने से रोगमुक्त हो जाता है मुनष्य

उत्तराखंड के चार धामों में प्रमुख बद्रीनाथ धाम,जो नर-नारायण दो पहाड़ों की बीच विद्यमान है। भगवान विष्णु के समर्पित इस मंदिर से कई रहस्य जुड़े है। पौराणिक कथाओं के अनुसार,भगवान शंकर ने बद्रीनारायण की छवि एक काले पत्थर पर शालिग्राम के पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी। वह मूल रूप से तप्त कुंड हॉट स्प्रिंग्स के पास एक गुफा में बना हुआ था।

इस लिए बद्रीनाथ भगवान के दर्शन से पहले तप्त कुंड में नहाने की परंपरा रही है। कहते है यही पर भगवान बद्रीनाथ जी ने तप किया था। यही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से जाना जाता है। इस कुण्ड में हर मौसम गर्म पानी रहता है। इस कुंड से निकलने वाली गर्म पानी की धारा दिव्य शिला से होते हुए दो तप्त कुंडों तक जाती है।

जो भी श्रद्धालु भगवान बद्रीनाथ जी के दर्शन करने आते है। इस कुंड स्नान जरूर करते है। कहा जाता हैं कि इस कुंड में स्नान करने से मनुष्य कई रोगों  से मुक्ति पा लेता है। तप्त कुंड अपने औषधीय गुणों के लिए भी प्रसिद्ध है और पानी को त्वचा की विभिन्न प्रकार की एलर्जी को ठीक करने वाला माना जाता है। इस कुंड में तापमान औसत 55 डिग्री सेल्सियस होता है जबकि अन्य जगहों का तापमान हमेशा 9-10 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है।  लेकिन कहते हैं कि इस कुंड के पानी में स्नान करने से भक्तों को उनके पापों से छुटकारा ही नहीं मिलता बल्कि उन्हें कई रोगों से मुक्ति भी मिलती है। इसी लिए कहा जाता हैं कि बदरी सदृशं तीर्थ, न भूतं न भविष्यति